क्या सरकार भी इतनी लापरवाह हो सकती है? - 21 Days Lockdown
जो बेवकूफी कल लोगों ने जश्न मना कर की थी उससे ढाई गुना बड़ी आज हमारे प्रधानमंत्री ने एक ऐसा भयानक भाषण देकर की है जिसकी वजह से अब किराने और सामानों की दुकानों पर भीड़ की भीड़ टूट पड़ी है।
ना किसी को कोरोना की चिंता है ना देश की - इनकों चिंता है कि २१ दिन के बंद के बीच ये लोग खायेंगे क्या?
हाँ इस वक्त इस बंद कि जरुरत थी और इसे होना चाहिए …
तो क्या इसे करने कि प्रक्रिया में जनता कि जरुरत और प्रतिक्रिया से एकदम बेपरवाह रह जाना कोई काबिले तारीफ़ कार्य है? क्या यह एक सजग कदम है?
प्रधानमंत्री इस बंद के कड़क होने के बारे में और जरुरत के बारे में तो खूब डराने वाला भाषण देकर निपट लिए लेकिन अगर उनमें इतना सेन्स नहीं था कि अचानक से ऐसी घोषणा करने के बाद जनता पर क्या प्रभाव होगा — तो क्या हम अच्छा अच्छा बोलकर अब इस अतीव बुद्धि के उस फैसले के लिए उनके गुण गाये जिनकी कृपा से राशन कि दुकानों पर बलवे का माहौल है और लोग एक दुसरे पर चढ़े जा रहे हैं..
क्या सारे भाषण का मुख्य केंद्र यह नहीं हो सकता था कि लोगों को जीवन को सुचारू रूप से चलने देने के लिए व्यवस्था की गयी है और इसके तरीके ये-ये रहेंगे?
क्या लोगों को ऑनलाइन सामान मंगवाने के लिए रास्तों और तरीकों का जिक्र और व्यवस्था नहीं हो सकती थी?
कौन ऐसे समझदार लोग इन्हें ऐसी सलाहें देते हैं और कैसे ये ऐसे महत्वपूर्ण हिस्से भूलकर कुछ तो भी नोटबंदी - घरबंदी बिना जनता के महत्त्व के मुद्दे सोचे किये जाते हैं यह एक रिसर्च का विषय है..
लेकिन फिर भी आपको संयम के साथ काम लेने की जरूरत है। आप यूट्यूब के फर्जी दावों वाले विडियोज पर भरोसा मत करिए। आप विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन कीजिए।
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